यही प्यार तो मुझे
अनन्त तक ले गया,
यही स्नेह तो मुझे
अनन्त से मिला गया।
इसी प्यार की स्तुति में
श्री कृष्ण भी खो गये,
इसी स्नेह को देख
धर्मराज भी रूक गये।
इसी स्नेह में
पुष्प भी खिल गये,
इसी प्यार में
फल भी आ गये।
इसी प्यार में
धरा हरी हो गयी,
इसी स्नेह में
सर्वत्र लाली छा गयी।
यही प्यार तो मुझे
पगडण्डियां दिखा गया,
यही स्नेह तो मुझे
मधुर स्वर दे गया।
** महेश रौतेला