सब भटक रहे हैं
कोई पैसों के लिए तो
कोई प्यार के लिए
कोई चैन की साँस के लिए
हम तन्हा थे तो कोई फिक्र न थी
उसका हाथ पकड़ा तो
मोहब्बत समझ आई,अब
भटक रहे हैं
उसे पाने के लिए
अपना बनाने के लिए

-Prahlad Pk Verma

Hindi Poem by Prahlad Pk Verma : 111650879

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now