कहो ना कोई इस चांदनी से,
झुलस रहा है मेरा मन हर पल..
तुम चले आये ए-चाँद फिर से,
फिर से किसी की याद लेकर..
इतने तारों के बीच जैसे तुम अकेले हो,
मेरा मन भी अकेला है इस भीड़ में..
छुप जाओ तुम कहीं इन बादलों के पीछे,
झुलस रहा है मेरा मन इस चाँदनी से..

Hindi Poem by Sarita Sharma : 111649668

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