आख़िर क्यूँ ? 
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जब इतने सुख मेरे समक्ष फिर दुख की बात करूँ क्यूँ मैं
ये धरा-गगन संदेशे दें हृदय में ताप धरूँ क्यूँ मैं
जब इतने सुख.........
धरती अंबर  मेरे मन का नीड़ बनाते हैं 
और धूप छाँव सब मिलकर ही जीने की अदा सिखाते हैं  
फिर अश्रुपात यदि होताहै उसको स्वीकार करूँ क्यूँ मैं
जब इतने सुख.........
सागर की इतनी गहराईऔर आसमान की ऊँचाई
देती मुझको थपकी जब तब पहली सूरज की अँगड़ाई
आनंद की जोत जलाए मन फिर क्रूर प्रहार सहूँ  क्यूँ मैं
जब इतने सुख.........
शाश्वत जीवन ,शाश्वत मृत्यु सार्थक संदेश सुनाते हैं 
निर्मल प्रकृति में पशु-पक्षी जैसे संगीत सिखाते हैं 
कुछ  रिश्ते गर कड़वे भी हों उन पर प्रहार करूँ क्यूँ मैं ----
जब इतने सुख मेरे समक्ष फिर दुख की बात करूँ क्यूँ मैं----
डॉ.प्रणव भारती  

Hindi Poem by Pranava Bharti : 111645741

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