" बिखर सी जाती "

कुछ दोस्त दुनिया से रुखसत हुए,
कुछ गांव छोड़कर शहर बस गई।

मैं ना ये दुनिया छोड़ पाया ना गांव कभी,
बस यादें दोस्तों की दिल में सजाए रह गया।

जिंदगी के अंतिम दिन की प्रतीक्षा में...
जिंदा लाश बन कर जिए जा रहा हूं।

फिकी सी ए जिंदगी अकेले तनहाई में यादें उनकी,
और उमंगों के अभाव में बोझिल सी लग रही।

इंतजार मेरा न जाने कब खत्म होगा,
बिछड़े हुए दोस्त न जाने कब मिलेंगे।

आज शायद खुदा मुझ पर रहम बरसा दे, और उन
दोस्तों से एक बार ही सही मुलाकात करा दे।

हर दिन खुदा की बंदगी से मुझे यही आस बंधती,
हर शाम "मित्र" की आस टूट कर बिखर सी जाति।

✍️मनिष कुमार "मित्र" 🙏

Hindi Poem by मनिष कुमार मित्र
मनिष कुमार मित्र" 3 years ago

शेखर जी आपका तहेदिल से शुक्रिया धन्यवाद 🙏

shekhar kharadi Idriya 3 years ago

वाह.. पुरानी यादें और यारों के साथ भावनात्मक रिश्तों का मार्मिक चित्रण...

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