तुं कुछ नया था बीते सौ सालों मे,
सब लोगो के जुर्म शायद जानता था तु!

कैद मै रखकर दुनियाभर के लोगों को,
बिना कोई सुनवाई सजा-ए-मौत देने का शौख पालता था तु।

मनमानी किए फिरता, बडा उद्दंड था शायद,
तभी तो किसीकी ख्वाहिशों को नही मानता था तु।

कम-स-कम जाते-जाते तो थोड़ा गम कम करजाते,
नया कोरोना दीऐ जा रहा है, पुराने वालेसे क्या कम मारता था तु?

तुं कुछ नया था बीते सौ सालों मे,
सब लोगो के जुर्म शायद जानता था तु!

#अलविदा२०२०

-Denish Jani

Hindi Poem by Denish Jani : 111636531
Denish Jani 3 years ago

True. We all are equally responsible for what is going around

Tr. Mrs. Snehal Jani 3 years ago

It's the fact. Human being should start to love nature instead to spoil it.

The best sellers write on Matrubharti, do you?

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