मैकाले, भाषायी विभाजन को झेलकर
खड़ी हो पायी थी थोड़ा सा संभलकर
दिग्भ्रमित लोग कुछ अतिवादी हो गये
अंग्रेजी-मोहपाश में बंधे तभी घाव दे गए

'सेवकों की भाषा यह' शब्दों के तीर चले
ओछी-राजनीती, विरोध, बैर में सब छले
'स्वहित' में चितन की परिधि ही सिमट गई
भूमंडलीय-संस्कृति में अँधेरा दिया तले

अस्पष्ट लक्ष्य बढ़ाता मंजिल की दूरी है
राष्ट्रीय-मुख्य-धारा की कल्पना अधूरी है
प्रवंचना, उपेक्षा के घाव न नासूर बने
स्वीकार करें हम, आज निर्णय जरूरी है

तमिल के तीर और कन्नड़ के त्रिशूल से
हमले जब उठे हिंदी कराह उठी शूल से
राजनीति -प्रेरित भाषायी हथियार उठे
सामान्य-जन-स्तब्ध,यह क्या हुआ भूल से?

शांति से बैठकर चर्चा करें, चिंतन करें
संवाद से ही सुलभ , सब मिल मंथन करें
शल्य-क्रिया की, आये न नौबत कभी
सर्व-भाषा-प्रगति का सभी अभिनन्दन करें

सर्वमान्य भाषा को राष्ट्रभाषा कर पहचाने
स्वयं बहु-माध्यमों की बन गई प्रिय यह माने
भूमण्डल में जिसने तृतीय स्थान बनाया है
हिंदी को स्वीकारें , उसे प्रगति का मूल जाने
- विवेकानंद

Hindi Poem by vivekanand rai : 111635549
shekhar kharadi Idriya 3 years ago

यथार्थ प्रस्तुति

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