ये हौसला है न
इसको मैंने नजरें उठाकर
देखा भी नहीं,
पर जितनी बार टूटती हूँ मैं
उतनी बार इसे
अपने आस-पास ही देखती हूँ !

एक चुटकी उम्मीद की
बजाना कभी
उदासियां भी खिलखिलाकर
गले लग जाती हैं
खामोशियाँ बतियाने लगती हैं
आपस में
और मन चल पड़ता है
एक नई डगर पे !!
....

Hindi Poem by Seema singhal sada : 111629067

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now