#चिंता
#कबर
#आशियाना
#जिंदादिली

ओढ़े चिंता का कफ़न,
कहां तू सोया निश्चिंत ?

दफनाएं अपनी इच्छाएं ,
बनाएं कबर या आशियाना ?

खोज लेे खुद को,
जिंदा या मुर्दा ?

बस्ती जिंदगी वहां,
जिंदादिली होती जहां।

बनती है हस्ती यहां,
हसरतें होती जहां ।

महेक परवानी

Hindi Poem by Mahek Parwani : 111625097

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