समाज
मैंने देखा जो समाज है सबसे निराला अनन्य...
जात पात बोल चाल है सबका अलग फिर भी
एक साथ सब रहते है मिल जुल कर खुशियों से
त्यौहार की भिन्नता फिर भी मना रहे है खुशियां
ध्यान धरम है सब लोगो का अलग फिर भी रहते सब एक साथ...
मैंने देखा जो समाज है सबसे निराला अनन्य...
मिलता है मान पान बड़पन हर एक नारी को
सम्मान पात्र के काबिल है हर एक पुरूष वहां
बुजुर्ग हो या बच्चा मिलता है सबको लाड प्यार
अधिकार की जो बात आये तो जुड़जाए जाए सब एक साथ...
मैंने देखा जो समाज है सबसे निराला अनन्य...
नही है वहां नात जात नही वहां अमीरी गरीबी
एक दूसरे के साथ बनते है सहायक तत्परता से
है सब लोग साक्षरता से भरे ना रहे कोई निरक्षर
अनुसंशित नियम बनाए पर सबके लिए समान सब एक साथ...
मैंने देखा जो समाज है सबसे निराला अनन्य ...
जब आंखों से ओझल हुई निंदिया तो पता चला
जो देख रही थी वो सुनहरा ख्वाब था मेरे मनका
लेकिन होगा जरूर पूरा ये ख्वाब हकीकत बनके
क्योंकि साथ मिलकर बन सकता है शुभ समाज सब के साथ...