बहुत कुछ बदल गया है तुम्हारे जाने के बाद,
जिन हवाओं में तुम्हारे जिस्म की खुशबू उड़ती थी, अब उन हवाओं में मौत बह रही है,
हम जो हंसते खाते पीते थे इस खुले आसमान के नीचे, अब चारदीवारी में कैद हो गई है ये खुशियां,
अब अगर तुम आ भी जाओ तो
शायद मैं तुम्हारी खुशबू ना पहचान सकूं,
ये कपड़े की कतरन सा मास्क जो आ गया है बीच में,
कभी-कभी सोचता हूं अच्छा ही है जो तुम अब नहीं हो,
यूं मरने के खौफ में जीने से तो मौत ही बेहतर है,
वैसे भी अब रिश्तो में भी मिठास नहीं रही पहले सी,
सब पराए से हो चले हैं, अब सुबह से शाम, शाम से रात हाथों में मोबाइल थमा रहता है,
मानो अब यही सब का हमसफर बन गया हो,
सच में... अब लगता है,
तुम्हारे बाद जैसे बहुत कुछ बदल गया हो
-Sarvesh Saxena