कितना पावन कितना पवित्र
श्रीराम का है जीवन चरित्र
जिनकी गाथा अविरल चली
जन - जन मनाएं दीपावली
यह याद दिलाती निज कर्म को
जो छोड़ा न कभी स्वधर्म को
मर्यादा का जो प्रतिमान बना
मानवता की जो शान बना
निस्वार्थ निर्लिप्त दीप सा कर्म
इसमें छुपा है जीवन का मर्म
हो सबका उत्कर्ष जग में हो हर्ष
यह दीपावली हो सहर्ष हर वर्ष
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Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111607399

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