बेखबर परिंदा दुनिया से लड़ कर सब छोड़ कर आया,
कहता जमाना जैसे उसे कोई चोट लगा कर नई आया,
दुनिया की बनी बनाई दास्ता से मुकमल कर आया,
जैसे दर्द ए दिल होने का वास्ता फिर गहराई से उभर आया,
उसकी निगाहें में बसे एक एक खयाल में गुम कर आया,
उसकी आंखो में बसे ख्वाब का जलवा गहराई में जाकर फिसल आया,
जवा हो रही उम्मीद की किरणे दिल के सहर में सौर कर आया,
हुस्न की दिल्लगी से दिल का खोने का दौर कहीं मचल आया,
बाते करने पर एक नया सफ़र मेरे जीने में उतर आया,
जब भी याद किया एक राहत का मशवरा सामने आया,
इश्क़ ए दहलीज का प्रस्ताव कहीं दफन ना हो ये आलम घर आया,
तुमसे दूर रह कर खुद से दूर ना हो जाऊ ये ताल्लुक आया,
चाहत एक तरफा का अनोखा पल बिखर आया,
चांद का ये महबूब कहा जलकर राख हो कर आया,
जिंदगी के लम्हे में ये बार बार कहीं सवाल आया,
किताब में फसे जवाब सामने बता कर नया ख्वाब भर आया,
जिक्र उसका लाजवाब लफ़्ज़ों में कर पल बना आया,
सब कुछ कह कर भी आधा बन कर मुकर आया,
इश्क़ तब्बसुम ये जाल में घायल हो अनकहे चर्चे कर आया,
मंजर में उसकी खूबी बसी प्यार का वास्ता में भर आया,
गुनाह कर दिया जैसे ना कह कर ये अनोखी बाते दरबदर कर आया,
उसको ए अहेशश महुब्बत में डाल कर इल्जाम माहौल में ले आया,
DEAR ZINDAGI 💞🌹