लॉकडाउन से एक दिन पहले की तैयारी मुझे बचपन में पिट्टुल खेल की तरह लगी। आज लगा मानो लॉकडाउन वही गेंद है, जिससे बचने के लिए हम जल्दी-जल्दी बिखरे पत्थर ज़माने की तरह घर में आवश्यकता के राशन जमा कर रहे हैं। ताकि इस लॉकडाउन की गेंद से हम बच सके। दो दिनों तक पूरा शहर यह खेल-खेलता रहा। जिन लोग ने सही समय में अपने हिस्से के पत्थर जमा लिए अब वो घर में निश्चिंत बैठे होंगे। जो रात 9 बजे के बाद दुकान पहुंचे होंगे समझो वह पत्थर जमा ही (राशन खरीद) रहे थे कि लॉकडाउन कि गेंद उन्हें लग गई। अब वही व्यक्ति लॉकडाउन में अपने पत्थर ज़माने घर-घर भटकने वाला है। बचपन से यह खेल मेरा प्रिय रहा है। इसलिए गाड़ी में पैट्रोल, खाने की आवश्यक चीज़े खरीदकर शाम 4 बजे रूम लौटा । लॉकडाउन की गेंद मुझसे काफी दूर थी। मैं फिर से यह खेल बिना भय के जीत चूका था। तुरंत किचन में एक कप कॉफ़ी बनाने के बाद बालकनी से लोगों को किराना दुकान में अपने पत्थर जमाते देखने लगा ।वहां काफ़ी भीड़ थी।🌸♥️
शुभ लॉकडाउन 🙏