सुबहा की लाली,
संध्या की लाली,
दोनों ही लाली हैं-
एक दिवस के आगमन का
दूजा दिवस के अवसान का।
हवा चलती है-
शीतल शीतल,या उमस भरी,
शीतलता सबों को भाती है
उमसता सबों को उबाती है।
फूल खिलते हैं-
मटमैले भी,चमकीले भी,
मटमैले होते हैं तीखे,
चमकीले होते हैं फीके।
नित आते हैं जग में कुछ नाम-
एक कौम को करते बदनाम,
दूसरा दुनिया को देते मुकाम।
हर बिम्ब के हैं दो अर्थ,
कौन जरूरी कौन हैं व्यर्थ,
पहचान करने में जो हैं समर्थ,
पाते हैं जीवन का वागर्थ।
*मुक्तेश्वर मुकेश