साज़िश करना हमे आता नही
यूँ बेवजह दिल तोड़ना भाता नही
काश तुम इत्तफाक से टकरा जाते
साँसों में हवा की तरह समा जाते
न तो ये मंजर होता जुदाई का
और न ही खंजर चुभता रुसवाई का

- आलोक शर्मा

Hindi Shayri by ALOK SHARMA : 111572725

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