संबंध कोई भी हो वह केवल बाह्य रूप में आपका सहारा बन सकता है, आंतरिक रूप से नहीं।
प्रेम, मित्रता, सगे-संबंधी या अन्य कोई संबंध आपके दुःख को समझने की कोशिश कर सकता है, परन्तु कभी समझ नहीं पाएगा।
पूर्णरूप से तो बिल्कुल भी नहीं।
यह सभी सम्बंध आपको केवल सहारा दे सकते हैं। परन्तु दुःख को कम या बांट नहीं सकते और उस समय तो बिल्कुल भी नहीं जब आपको इन संबंधों की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
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Hindi Blog by Roopanjali singh parmar : 111572491
shekhar kharadi Idriya 4 years ago

यथार्थ.. किंतु दुःख और सुख कि परिभाषा वक्त और हालात के साथ बदलती रहती है, जब दुःख आता है तब हृदय में गहरा सदमा लगता है और जब सुख आता है तब मन प्रसन्नता से झूम उठता है, दोनों की प्रतिक्रिया परस्पर विपरीत है, जो मनुष्य जीवन को सदा प्रभावित करता है जन्म से मरघट तक, सत्य से अस्तित्व तक.., मस्तिष्क के शुभ अशुभ विचारों, भावनाओं के साथ खेलकर क्षतिग्रस्त करता है ।।

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