फूल
मे फुल हु,
कभी भगवान के चरणोमे सज्जाऊ।
कभी घर, हवेली पर सवार जाऊ।
मे दोस्त हु,
कभी खुशियों पे काम आउ।
कभी दुख पर सांत्वना ले जाऊ।
मे श्रद्धा हु,
कभी भक्तोंके बल और भक्ति बनु,
तो कभी भगवान के आशीर्वाद बनु।
मे सुन्दर होकर भी कुरूप हु,
कभी हवा का थोड़ासा झोका से भी गिरजाउ,
तो कभी किसीका हितकर ना बनु......