My Wonderful Poem..!!!
सजदा क्या हमने छोड़ा वह
हमें काफ़िर-सा समझ बैठे
साथ उम्र-भर का देना था,
पर मुसाफ़िर ही समझ बैठे
उलझनें तों राहतें होती हैं
मोहब्बत की राहों में यारों
ग़मों के सैलाब को ही वह
नादान साहिल समझ बैठे
फ़ासले-मरहले भी मसले है
दो पल की दूरी भी मजबूरी
इब्तिदा-ए-इश्क़ में ही जानें
वह क्या-क्या रुसवा कर बैठे
हस्ती तो हसीन थी इश्क़ की
अमानत जानकी फ़िदा कर बैठे
और भी जानें क्या-क्या तमन्ना
जानें क्या-क्या आरज़ू कर बैठे
हक़-तलबियों की मस्ककत थी
संजीदा पर नफ़्स क़ुर्बान कर बैठे
रब से सब बे-सबबों-बे-ख़्याली
में माँगते माँगते फ़क़ीर-से बन बैठे
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