#एकसमान
एकरूपता को मन में बसा लेे,
फिर कोनसा भेद यहां बसे रे?

गरीब_ श्रीमंत को एकरूप देखे,
फिर कहां तू भ्रष्टाचार देखे रे?

भेद नज़र का जो मिटा दे,
तो कृष्ण _सुदामा जैसी मैत्री होय रे।

जो भूल जाएं भेद सोने _हीरे का,
वो भोलेनाथ होय रे।
Mahek parwani

Hindi Poem by Mahek Parwani : 111569381

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now