(क़िताब)

वो हाल अपने दिल का सुनाती है
मैं कुछ हाल अपना कहता हूँ
वो मुझे मेरी तरह ही समझती है
और मैं आवारा हर नयी पे मरता हूँ

वो कभी रूठती है मुझसे
मैं उसे पढ़कर मनाता हूँ
वो कहानियों मैं बांधती है जुल्फों जैसे
और मैं गुलाम उससे बंध भी जाता हूँ

अल्फाजो का गहना बड़ा महंगा पहनती है वो
मैं आशिक भी उसे अपने हाथ से सजाता हूँ
दुल्हन बनाता इसे ग़र लड़की होती
छोड़ो लड़कियों से तो मैं धोखा खाता हूँ

वो मुझे मेरी तरह समझती है
और मैं आवारा हर नही पे मरता हूँ
एक यही है पास मेरे अपनी कोई
'क़िताब' क्या कहूँ इसे मैं कितनी मोहब्बत करता हूँ!

©Yhnaam

Hindi Poem by Dhruvin Mavani : 111567393

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