हमसे तो सारा ज़माना रूठा है, पर
ए फिज़ाओ मत बदलो रुख आलम का...

मना ही लेते किसी भी तरह उन्हें,
पर कुछ अलग ही रूठना है बालम का...

- परमार रोहिणी " राही "

Hindi Shayri by Rohiniba Raahi : 111567254

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now