अपनी कमियाँ छुपाने के लिए दूसरों में कमियाँ निकालना स्वार्थी प्रकृति के मनुष्यों के #लक्षण हैं ।
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कैंची जैसी चले जुबाँ
काम किसी के न आती है
खुद के सारे पर्यायों का
औरों को शिकार बनाती है

वक्त वक्त की बात है कभी तुम्हारा
कभी हमारा हो जाता है
भूल गए हो जिन बातों को
याद दिलाना होता है

घुटनों के बल बैठे थे कभी
उँगली पकड़ उठाया था
कतरे कतरे पर कैसे लिखना
सब कुछ तुम्हे बताया था

बात करो हो आज ज्ञान की
हर कदम बढ़ा हमारा है,
लोलुपता कूट भरी नस- नस में
हा! धिक ज़मीर तुम्हारा है

अहंकार की मूरत हो तुम
झुकना न तुमको आता है
जीवन तुम्हे सिखलायेगा !
कौन कहाँ किसे सिखलाता है

वक्त रहते संभल जाओ
सुप्त शेर को फिर जगाया है
झुककर मिन्नत करें श्रगालों की
ऐसा वक्त अभी न आया है

रहो तुम अभिमान में ऐंठे
तुम्हे तुम्हारी चाल मुबारक
रहें हम निपट अज्ञानी मूरख
हमें हमारा अज्ञान मुबारक

चिकनी चुपड़ी बातों के अब न
संजालो में हम आएँगे
वार न करना भूल के हमपर
मजबूरन हथियार उठाएँगे ।

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अन्नपूर्णा बाजपेई 'अंजु'
कानपुर

Hindi Poem by Annapurna Bajpai : 111563916

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