सब कुछ एकदम वैसा ही है
कुछ भी नहीं बदला ...
हम कहते रहते हैं,
तुम सुनते रहते हो.
हम उलझ जाते हैं,
तुम सुलझा देते हो.
तुम चाह लेते हो,
हम कर देते हैं.
हम बिखरने लगते हैं,
तुम संभाल लेते हो.
यूँ ही हर दिन हर पल
साथ साथ बीतता है,
हमेशा की तरह...
बस एक छटपटाहट सी होती है
जब हम शरारत से,
तुम्हारे सलीकेदार बाल,
अपनी उँगलियों से बिगाड़ नहीं पाते..
लेकिन, कोई बात नहीं
तुम भी तो, अपने हाथ
हमारे काँधे पर नहीं रख पाते...
ये बात ध्यान में आते ही
हमारी छटपटाहट साझी हो जाती है
और हमारे बीच सब कुछ
एक-रस हो जाता है
जैसा हमेशा था
साझा, न हमारा न तुम्हारा
और हम फिर ...
अगले पल साथ जीने लगते हैं....