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कुछ खोने का डर कुछ ज्यादा पाने को आगे नहीं बढ़ने देता गिरने का डर ऊपर चढ़ने नहीं देता पर जिंदगी का सच यह है कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है मंजिल पर पहुँचने के लिए गिरने का डर छोड़कर ऊपर चढ़ना ही पड़ता है आगे बढ़ना ही पड़ता है डॉ. कविता त्यागी
Thanks a lot harsh ji
सही कहा आपने... काम चाहे कोई भी हो लेकिन उसे करने में जोखिम तो उठाना ही पड़ता है। अगर डरते ही रहे तो कोई भी काम नहीं कर सकते फिर आसान लक्ष्य भी अप्राप्य हो जाएगा।।
बिल्कुल सही कह रहे हैं आचार्य जी ! लोभ , क्रोध आदि अनेक मनोविकार हैं , जिन पर विजय पाना मानवीयता के लिए जरूरी भी है और कठिन भी है ।
बच्चों में डर का भाव इसलिए नहीं होता , क्योंकि बच्चे हानि लाभ का गणित नहीं लगाते । जब हानि लाभ की समझ हो जाती है , उसी समय से डर पनपने लगता है ।
और वैसे सिर्फ भय ही नहीं है जिसे जितना सबसे कठिन है, बल्कि और भी मानसिक भाव है, जो भय से भी कई अधिक कठिन है।
डर को केवल साहस से जीता जा सकता है। यदि आप बच्चो को देखे तो वे कभी भी साहस का परिचय देने से पीछे नहीं हटेंगे। बस यह मा बाप और बाकी बड़े लोग ही है जो उसे संभावनाओं से भटका कर मर्यादा और भय मेे बांध देते है । बस यही वापस लाना है ।
आचार्य जी , सही प्रश्न उठाया है आपने । डर को जीतना ही तो सबसे कठिन कार्य है ।
सही बात है ! पर इसके लिए सबसे पहले डर (भय) को जितना पड़ता है ! और इस भय को केसे जीता जाता है यह कोन शिखाता है ?
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