मन तितली-सा उड़ता फिरे
तन-चमन में खिली बहार रे
न कोई रोके , न कोई टोके
न कोई सीमा हो न द्वार हो
अपनी धरती , अपना गगन
अपना सारा संसार हो
रंग बिरंगे पंख मेरे
रंगीन है मन-संसार रे
कली और फूलों से लदी हुई है
मेरी बगिया की हर डार रे

डॉ. कविता त्यागी

Hindi Poem by Dr kavita Tyagi : 111537296
Dr kavita Tyagi 4 years ago

बहुत बहूत धन्यवाद भैया जी

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