मन को भटकने दो
जब तक पकड़ने में नहीं आता
दौड़ने दो,
जिस घराट पर पहुँचेगा
चिड़िया की खिट-खिट सुनेगा,
जिस विद्यालय में बैठेगा
पुस्तकों के पृष्ठ पलटेगा,
जिस देश में घूमेगा
विविधता रंग में रंग जायेगा,
जहाँ भी पहुँचेगा
मिठास दे मिठास ही खोजेगा।

*महेश रौतेला

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111533197

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