रंज

जीवन-मरू कभी विपिन ना बनेगा,
मिथ्या से वचन तेरे कहने लगे है।

मखमली नंदन-कानन की छांव मे,
काँटे बबुल के अब लगने लगे है।

समझा, सुरभी है अंजुली मे मेरी,
अंगार तेरे हथेली जलाने लगे है।

चांदनी की सेज पर धूप की चादर,
अवसाद के सायें सिरहाने लगे है।

छलिये की मधुमास मे खिले कुसुम,
प्रांतर का ओछा फूल लगने लगे है।

तेजोमय अभिलाषा के स्वर्णीम स्वप्न,
दृष्टिपथ से अंतर्धान होने लगे है।

'अनु'रक्त से लगते थे प्रेमदीप जो,
अंधकार विरक्ती मे जलने लगे है।

Hindi Poem by अनु... : 111523839

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