बेहोश सा होकर ही अब कभी कभी खुद से मिल पाता हूँ,
होश में रहकर मिले तो अरसा हो चला।
और यूँ बेहोशी में भी खुद को कभी कभी अब अनजान ही बताता हूँ,
होश में तो किसी अपने को अपना कहे भी अरसा हो चला।

#बेहोश

Hindi Shayri by Akash Saxena

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