#बाज़
अपनी पहचान बनाने की चाहत में एक छोटे से दायरे से खुले आसमान में आकर जल्दी ही उसके पंखों ने उडान भरना सीख लिया था, मगर साथी पक्षियों में ही छिपे बाज़ को पहचानने में धोखा खा गयी थी वह।

'आई सी यु' में पड़ी अधखुली आँखें माँ की ओर देख, बोल रही थी। "माँ, ठीक कहती थी तुम। ऊँची उडान के लिये पंखों की परवाज़ ही नहीं, बहती हवा के बदलते रूख़ को देखना और उससे ख़ुद को बचाना भी आना चाहिये।”

विरेंदर 'वीर' मेहता

Hindi Microfiction by VIRENDER  VEER  MEHTA : 111514094
VIRENDER VEER MEHTA 4 years ago

आभार भाई जी, प्रोत्साहन के लिए। 💐

Lakshmi Narayan Panna 4 years ago

Vaaah sir . Poori dastan kah di, thode shabdon mein.

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