.... रास्ते का पत्थर....
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रास्ते का
एक छोटा सा पत्थर हूँ,
कुछ अनमना सा,

तभी,
रास्ते से जो गुज़रा
जाते-जाते,
एक ठोकर लगाई
मैं एक कदम आगे सरक गया
खुश था बहुत कि आगे आ गया
जो मेरी अरसे से चाहत थी
मैं भूल गया कि आगे का मतलब
पीछे भी हो सकता है...

पुनः ठोकर लगी
और मैं पीछे हो गया
उस जगह से
जहां पर मैं था

मुझे उस ठोकर की तलाश है
जो,
मुझे वहीं छोड़ जाएं
जहाँ हम थे.....!!

करुनेश कंचन

Hindi Poem by करुनेश कंचन.. : 111511484
Ruchi Dixit 4 years ago

बहुत सुन्दर

Brijmohan Rana 4 years ago

बेहतरीन सृजन ,जिदंगी के उतार चढाव का शानदार वर्णन ,वाहहहहहहहहहहहह ।

Sushma Gupta 4 years ago

वाह.... जिंदगी के उतार चढाव पर बहुत खूब विचार.... 👏👏👏👌👌👌

shekhar kharadi Idriya 4 years ago

यथार्थ निरूपण...

Sangita 4 years ago

Saarthak rachna

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