.... रास्ते का पत्थर....
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रास्ते का
एक छोटा सा पत्थर हूँ,
कुछ अनमना सा,
तभी,
रास्ते से जो गुज़रा
जाते-जाते,
एक ठोकर लगाई
मैं एक कदम आगे सरक गया
खुश था बहुत कि आगे आ गया
जो मेरी अरसे से चाहत थी
मैं भूल गया कि आगे का मतलब
पीछे भी हो सकता है...
पुनः ठोकर लगी
और मैं पीछे हो गया
उस जगह से
जहां पर मैं था
मुझे उस ठोकर की तलाश है
जो,
मुझे वहीं छोड़ जाएं
जहाँ हम थे.....!!
करुनेश कंचन