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सुनो,
अब जब मैं तुमसे मिलूँ तो वैसे पेश मत आना, जैसे आया करते हो। बाल भी ज़रा कम बनाना, मुस्कुराना मत मुझे देख कर .. और वो मेरी पसन्द की नीली शर्ट तो बिल्कुल भी मत पहनना। वरना शायद फिर देखने लगूँ तुम्हें जी भर कर, शायद फिर से आहिस्ता-आहिस्ता मुझे मोहब्बत होने लगे तुमसे।
और सबसे खास बात..
बर्ताव ज़रा सा बदल लेना अपना। मुझे तुम्हारा यूँ ही आँखों से बातें करना पसंद है।
पसंद है मुझे.. मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारी आँखों का चारों ओर मुझे तलाशना।
पसंद है मुझे.. तुम्हारा बिना किसी संकोच या डर के मुझे अपलक देखना।
मुझे पसंद है, जब तुम इशारे में मेरा हाल पूछते हो।
मुझे पसंद है, जब तुम आँखें चढ़ाकर मुझसे सवाल करते हो।
सच कहूँ तो मुझे तुमसे मोहब्बत भी, तुम्हारी आँखों की वज़ह से ही हुई थी।
एक गहरी उदासी भरी आँखें।
ऐसी उदास आँखें जो पहली बार मेरी बातों से मुस्कुराई थीं।
मैंने जब-जब तुम्हारी आँखों में देखा, तो तुम्हारे बिन कुछ कहे कोई किस्सा सुना है।
मुझे ये उदास आँखें अपनी ओर खींचने लगती हैं।
यह उदासी ही वो वज़ह है जो मैंने तुम्हारी आँखों में एक बार देख, फिर दुबारा देखा था।
सुनो,
अब वही उदास आँखों से मत मिलना मुझे..
शायद अब मैं किस्सा सुन नहीं सकूँगी,
और.. फिर मेरी आँखें कभी मुस्कुरा नहीं सकेंगी।
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