पुकार

कान्हा, इस तरह, यूहीं जितेजी मुझे न मारो

दूर से ही सही, मुझे कभी तो पुकारो ।

आवाज़ सुनने को तडप गये है कर्णपट मेरे ;

क्यूँ मुख से अलफाज़ नही निकलते तेरे ?

न बन्सरि की मीठी धुन बुलाये, न तेरे मधुर गीत ;

मेरी पायल है घायल, न तान, न जान, और न संगीत ।

आज तो तेरा हर काम, तेरे हर बंधन तोड दे,

मुझसे, तेरी राधिका से, एक बार फिर नाता जोड़ ले ।

यूह न मोहन मुझे तडपा, न तरसा;

तेरे प्रित की, तेरे प्रेम की बारिश बरसा ।

सुन ले तू पुकार मेरे दिल की, तुझे हर धड़कन पुकारे

कान्हा, तुझे तेरी राधिका, रो रो कर बुलाये ।

Armin Dutia Motashaw

Hindi Poem by Armin Dutia Motashaw : 111504143

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now