पुकार
कान्हा, इस तरह, यूहीं जितेजी मुझे न मारो
दूर से ही सही, मुझे कभी तो पुकारो ।
आवाज़ सुनने को तडप गये है कर्णपट मेरे ;
क्यूँ मुख से अलफाज़ नही निकलते तेरे ?
न बन्सरि की मीठी धुन बुलाये, न तेरे मधुर गीत ;
मेरी पायल है घायल, न तान, न जान, और न संगीत ।
आज तो तेरा हर काम, तेरे हर बंधन तोड दे,
मुझसे, तेरी राधिका से, एक बार फिर नाता जोड़ ले ।
यूह न मोहन मुझे तडपा, न तरसा;
तेरे प्रित की, तेरे प्रेम की बारिश बरसा ।
सुन ले तू पुकार मेरे दिल की, तुझे हर धड़कन पुकारे
कान्हा, तुझे तेरी राधिका, रो रो कर बुलाये ।
Armin Dutia Motashaw