अनुभूतियाँ भी कोई कहने की या जताने की चीज़ है?
गौर से सुनो,
आपने कभी राजा को नौकर कहा है?
या
साइकिल को बैलगाड़ी
या
कभी पंखे को इस्त्री
या
कभी गाड़ी को लाडी
या
कभी कांटो को फूल?
कभी भी?
तो
अब,
जब
भावनाओं की बात हो,
तो
प्यार सिर्फ़ प्यार न होकर
कुछ ओर क्यों होता है?
मुझे प्रेम, गुस्सा, अनबन, नफरत, खुशी आदि को कुछ भी ओर कहना नहीं आता...
जो है सो है,
पता नहीं, लोग इतनी सी बात क्यों नहीं समज पाते?
वैसे ही क्यों नहीं दिखते या महसुस होते, जैसे कि वे है...?!