मुझे भी डर है,
असफल होने का फासले बढ़ कर,
दूर होती मंजिल का

लेकिन मंजिल पर पहुंच कर,
गुम हो जाते रास्तों का
नदियों के सूख जाने का,

आसमां के गिर जाने का वृक्षों के सूख जाने,
और तारो के टूट जाने का

इंसान के भीतर की इंसानियत के मर जाने का
#षणानन

Hindi Poem by Abhinav Bajpai : 111491346

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