पापा जी (भाग-1)

वैसे तो हमने पापा जी पर काफ़ी कुछ लिखा है, जिसे पढ़ कर या तो वो भावुक हो जाते हैं और हमें खूब सारा प्यार करते हैं।
या फिर हँसते हुए कहते हैं कितना गौर करते हो, और हम पर गर्व करते हैं।
लेकिन, हमने जब भी उन पर लिखा तो हमेशा कुछ कमी महसूस हुई। जैसे हमेशा ही हमसे कुछ छूट जाता हो।

कभी सोचते हैं हम उनकी तरह बनें..
मगर, हम हमारे पापा जी जैसे कभी नहीं बन सकते..
क्योंकि उनके जैसे बनने के लिए सबसे पहले हमें उनसे दूर जाना पड़ेगा।
यह पहला पड़ाव ही कभी हमसे हुआ नहीं। हमने उनके पास रहने के लिए सबकुछ छोड़ दिया.. और यह हमारा त्याग नहीं था, स्वार्थ था।

उनके जैसे बनने के लिए हमें सबसे पहले बाहर निकलना होगा, लोगों के बीच उठना-बैठना होगा। अपनी बात सबके सामने रखना सीखना होगा। कम शब्दों में कहें तो आत्मविश्वासी बनना होगा।
और हम आज भी भीड़ में, या ज़्यादा लोगों में हाथ पकड़ लेते हैं। तो आत्मविश्वास का अब क्या ही कहें।

उनके जैसे बनने के लिए हमें सारी ख़्वाहिशें छोड़नी पड़ेंगी, सारे शौक भूलने होंगे। त्याग करना सीखना होगा। हमसे कभी यह भी नहीं हुआ।

पापा जी जैसा बनना बहुत चाहते हैं मगर, वो निस्वार्थ प्रेम हमसे लाख कोशिशों के बाद भी नहीं हो पाता। उन लोगों से तो बिल्कुल भी नहीं जो स्वार्थी हैं, और हम यह सब जानते हुए भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाते।

पापा जी जैसा बनने के लिए उन चीजों से मोह छोड़ना पड़ेगा जो केवल दिल को ख़ुश करती हैं।
और हम अपनी चीजों, अपने खिलौनो और यहाँ तक की अपने लोगों के लिए ही बहुत अधिकार प्रकट इंसान हैं। जैसे जो हमारा है, वो बस हमारा है।
तो स्वाभाविक सी बात है हमसे यह भी कभी नहीं हुआ।

पापा जी जैसा बनना आसान होता भी कैसे, वो ठहरे ईमानदार, स्वभाव से महान और छल-कपट से परे, हमेशा दूसरों के हित का सोचने वाले। हम में यह ईमानदारी और महानता नहीं है। हमसे.. हमेशा, हर समय दूसरों की भावनाओं का ख़्याल नहीं रखा जाता। ग़लती हो ही जाती है। तो हम उन जैसे होते भी कैसे, हम उन जैसे कभी बन ही नहीं सकते।
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क्रमशः
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Hindi Blog by Roopanjali singh parmar : 111491211

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