उग्र

तुमने ही पैदा किया है अपने ही अंतर गर्भ से
नदियां, पहाड़ , झरने , समुंदर, जल, जीव
फिर इतनी प्रचंडता क्यों
अपनी ही जायों को
क्षण मात्र में खत्म कर देने की आतुरता क्यों है
योग्यता-अयोग्यता के बीच
प्राकृतिक आपदा का विकराल स्वरूप
जनमानस में व्याप्त
जीवन यात्रा के अंत की भयावहता
दिन प्रतिदिन उग्र होता स्वरूप
किस गलती का परिणाम है
समस्याओं का समाधान के लिए
क्यों हो गए हो उग्र
शांति का रूप भी तुम ही हो
क्रांति की विकरालता भी तुम ही हो
जनमानस के भीतर फैले
तिमिर का रूप भी तुम ही हो
हो जाओ शांत
फैला दो खुशियों का संसार
भीतर बाहर कर दो आनंद ही आनंद
-शिवसागर शाह'घायल'

#उग्र

Hindi Poem by Shiv Sagar Shah : 111468830
Priyan Sri 4 years ago

क्या बात है 👌 👌 👌

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