मेरे माँ-बाबा का प्रेम असीमित है।
बिना किसी शब्दों में गढ़े, महिमामंडन किए, बिन कहे उनका प्रेम मुझे सुनाई देता है। उनके प्रेम को कभी शब्दों के पीछे नहीं छुपना पड़ा। उन्हें कभी किसी महान लेखक की महंगी किताब में छपी प्रेम भरी पंक्तियों का सहारा नहीं लेना पड़ा।
आज भी जब बाबा, खाना खाते हुए रोटी के दो हिस्से कर, आधा हिस्सा माँ की थाली में रख देते हैं..
उस समय माँ के ''असमंजस से भरपूर मुस्कुराती आँखों के भाव" और बाबा के चेहरे का सुकून केवल उनके प्रेम का परिचायक होता है।
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