ये ना समझना कि अनजान हूँ तुम्हारे घर से
तुम्हारे घर का हर शीशा अल्हड़पन है मेरा जो तुम्हे सारा दिन छेड़ता है
फर्श जिसपे तुम चलती हो ये मेरे कान हैं जो तुम्हारे क़दमों की आहट पहचानते हैं
चूड़ियां जो तुम्हारे हाथों में बजती हैं
ये मेरे लिए ही तो खनकती हैं
लाली जो तुम्हारे होठों पे रचती हैं
ये मेरे लिए ही तो सजती है
तुम्हारे माथे पे लगी बिंदी
मेरा काम ही तो करती है

बुरी नज़रों को तुमसे दूर रखती है
तुम्हारी मुसकान राज़दार है मेरी
हर पल तुम्हारे मन की चुगली मुझसे करती है
तुम्हारे अलग - अलग पेन्डेन्ट जो तुम्हारे सीने से लटकते हैं

ये
छोटे - छोटे दिल हैं मेरे जो तुम्हारे दिल के साथ धड़कने को आपस में लड़ते हैं
ये न समझना कि मैं अनजान हूँ तुम्हारे घर से
सारे बल्ब.... ये तुम्हारा चेहरा रोशन करने के लिए कहे पे ही तो जलते हैं

Hindi Poem by Shirish Sharma : 111437820

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