"बेचैन मजदूर"
बेचैन मजदूर
गांव से दूर,बहुत दूर
प्यासे प्यासे,भूखे भूखे
देख रहे आश्वासन की झील
चलना है अभी हजारों मील,

बेचैन मजदूर
पड़ गए पांव में छाले
पीठ पर नन्हा सा बच्चा
गठरी में बासी रोटी के टुकड़े
बरगद के बूढे छांव तले
नमक घोल कर खाते रोटी
पेट और पीठ दोनो गए मील,

बेचैन मजदूर
सप्ताह में पहुच जाएंगे गंतब्य
शहर नही आएंगे कर शंकल्प
चलते उठते बैठते पैर थरथराते
राज्यो की सीमा मिली होगी सील
कइयों को रास्ता ने लिया लील
रचना-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'

Hindi Poem by shiv bharosh tiwari : 111437441

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