अगर आपके अंदर अभी भी कहीं ना कहीं,और किसी भी इंसान के प्रति संवेदना को रूह से मेहसूस करते है,या करते हो,तो सच में आप के अंदर अभी भी कहीं ना कहीं इंसानियत नाम की एक अजीज चीज आपकी रूह में पल रही है या फिर रूह में जी रही हैं।और इस संवेदना को मरते दम तक अपनी रूह में कहीं ना कहीं जिंदा और बरक़रार रखना,और कभी भी किसी भी हालातों में संवेदना को अपने अंदर मरने मत देना,क्योंकि जिस दिन भी ये संवेदना मर गई उस दिन इस दुनिया से इंसानियत भी उसी संवेदना के साथ मर जायेंगी,इसीलिए
किसी ना किसी भी हालातों में भी संवेदना को अपने रूह में कहीं ना कहीं जिंदा और बरक़रार रखे,ताकि संवेदना के साथ साथ इंसानियत भी जिंदा बरक़रार रहे सके।क्योंकि इक संवेदना ही तो हैं जो इंसानियत का एक जीता जागता पुख्ता सुबूत है और एक संवेदना ही तो एक नेक बंदे की असली पहचान को प्रमाणभूत करती है,क्योंकि जहां संवेदना होंगी, वहां इंसानियत भी जरूर होंगी, क्योंकि संवेदना और इंसानियत दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
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केशर कुंज