आओ सुनाती हूं मेरी कहानी
जो है बड़ी सुहानी
मैं हूं एक घंटी
नहीं हूं किसी की बंदी
विभिन्न है मेरा रूप
नहीं रहती हूं चुप
मैं मंदिर में हूं
मैं दरवाजे पर हूं
मैं घर में हूं
मैं विद्यालय में भी हूं
कहीं स्वर है ऊंचा
तो कही है नीचा
कान के नीचे भी बजाई जाती हूं
चल चित्रों में भी दिखाई जाती हूं
यही थी मेरी कहानी
मैं हूं घंटी
सभी है मेरे मित्र
चाहे हो सोना, मोना या बंटी

Hindi Poem by Yakshita : 111418879

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