पत्थरों पर गिराकर फूल
तुम समझाते हो
सब रिश्ते यूँही
पेड़ों से टूट
कर ,उगना वापस भूल
जायेंगे ।

गलत सोचते हो
ये जो गिरे है
ये वक्त के नव प्रतिस्फुटित
होने वाले बीज
जो अभी
खिलेंगे, वो
फूल अभी प्रेम के
बीज ,मुट्ठी मे
पकडे है

धरा की छाती में कुछ
भेद गिलहरी बो देगी
असमान कुछ नेह बरसा देगा
बनकर प्रेम का बीज
खिलेगा फिर नया
कोई बाग यहाँ।



Pic courtesy: Google

English Poem by Neelam Samnani : 111398047

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