कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
कभी सुख कभी दुख यही ज़िंदगी है
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी है
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी है
नये फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
भले तेज़ कितना हवा का हो झोंका
मगर अपने मन में, तू रख यह भरोसा
मगर अपने मान में तू रख यह भरोसा
जो बिछड़े सफ़र में तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
कहे कोई कुछ भी मगर सच यही है
लहर प्यार की जो कहीं उठ रही हैं
लहर प्यार की जो कहीं उठ रही हैं
उसे एक दिन तो किनारे मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
कहाँ तक ये मान को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढालेंगे
#वसंत
#कोरोना