चलते चलते अब राही दिल ये मेरा थक गया,
चेहरों के जंगल में अपनी राह भटक गया।

एक एक कदम भी अब तो रखता है ये गिन गिन कर,
हर कदम पर जैसे दिल में कुछ चिटक गया।

सोचा ना था ये सफर होगा इतना मुश्किल कभी,
फूलों के गुलदस्ते में कांटा कोई अटक गया।

सागर की लहरें भी देखी और उसकी गहराई भी,
एक पानी का रेला आकर इसे किनारे पटक गया।

कोई साथी अपना ये ढूंढ ना पाया अभी तलक,
हर आँख में सच्चा चेहरा "पागल" का खटक गया।

✍🏼"पागल"✍🏼

Hindi Shayri by Prafull Pandya : 111375190

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