क्या लूटेगाा कोई खुशियां हमारी
हम तो खुद अपनी दुनिया मिटाये बैठे हैं
प्रेम के महज़ ढ़ाई अक्षरों में
खुद को खुद से भुलाये बैठे हैं ।

Hindi Shayri by Dr Narendra Shukl : 111338419

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