ये कौन-सी रेत है जो उड़ा रहीं है मेरी ख़ुशी,
आइना ला कर दे, पता नहीं क्या है बेरुख़ी।

परवाना यूँ ही कहाँ रात-भर रहता है दुःखी,
कोई अपना ही होगा, जिसे देता है रोशनी।

कर भी क्या सकता, मेरा ख़्वाब, है ऐ-खुदा,
वो बैठें है ज़मीं पर, जिसे इल नहीं आयत-की।

ज़रा जा कर देख आ कहाँ छिपा हैं वो पल,
जो यहीं था, बेख़बर थीं जिससे मेरी ज़िंदगी।

एक लम्हा जो खो गया कहीं हैं देख ‘विनय’,
अब शिकवा हैं, और श्याहि है शमशीर-सीं।

Hindi Poem by Vinay Tiwari : 111332554

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