दिसम्बर की सर्दी है उन के ही जैसी

ज़रा सा जो छू ले बदन काँपता है

Hindi Shayri by Rudra : 111305537
Parmar Geeta 4 years ago

वाह बहुत खूब... 👌

Rudra 4 years ago

आमीन!!! क़र्ज़ कोई भी हम नहीं रखते आप चाहत की इंतिहा कीजे

Parmar Geeta 4 years ago

वाह.. अब हार और जीत के खेल से उपर हूं में.. बस इतना जानतीं हूं कि शिद्दत से तुझे चाहतीं हूं में..

Rudra 4 years ago

वाह!! अब मुझे कौन जीत सकता है तू मेरे दिल का आख़िरी डर था

Parmar Geeta 4 years ago

वाह लाजवाब.. मैं इसी डर से तुम्हें नहीं चाहतीं... मैं जिसे चाहु वहीं शख्स छोड़ कर चला जाता है..

Rudra 4 years ago

आफरीन!!! बहुत मुश्किल ज़मानों में भी हम अहल-ए-मोहब्बत वफ़ा पर इश्क़ की बुनियाद रखना चाहते हैं

Parmar Geeta 4 years ago

વાહ... तुम ने देखीं ही नहीं हमारी फूलों जैसी वफा.. हम जिस पर खिलते हैं, उसी पे मुरझा जाते हैं..

Rudra 4 years ago

धन्यवाद जी

Rudra 4 years ago

क्या बात!!! किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहीं वो रंग है ही नहीं जो तेरे इश्क में नहीं

Shilpi Saxena_Barkha_ 4 years ago

Wahh..bahut khoob..👌🏻👌🏻👌🏻

Parmar Geeta 4 years ago

વાહ ક્યાં બાત હૈ... हर फिजा में तेरा ही रंग है.. तु दूर रह कर भी मेरे संग है..!!

Rudra 4 years ago

शुक्रिया मोहतरमा!!! तन्हाई में करनी तो है उन से कइ बातें लेकिन वो किसी वक़्त अकेले नहीं होते

Parmar Geeta 4 years ago

वाह शायर... लफ्जों की दहलीज पर घायल जुबान है.. कोई तन्हाईं से तो कोई महफिल से परेशान है..!!

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