मन में संताप क्यों?
जीवन में उत्पात क्यों?
माना कि तेज बवंडर में
सबकुछ खो गया..
क्या जीवन यहीं
पूरा हो गया?
उद्विग्नता की घड़ी हो
परछाई दूर खडी़ हो
प्रहर बेखबर हो
प्रतित हो रहा दोपहर
हो..
कोई साथ न चले
ऐसा भी प्रहर हो
तिरोहित हर डगर हो
विवर्धन पथ तुम बनो
बढे चलो..
#अनामिका
#डॉरीना
#हिंदी_का_विस्तार

Hindi Poem by डॉ अनामिका : 111252799

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