कर्म की गति न्यारी है,, |
सारे जग पे भारी है,,|
यहाँ नहीं चलती लांच, रिष्वत,
ना चलती भ्रस्टाचारी है,,|
न कोइ अहंकारी,
न कोई व्यापारी चलती है,,
दगाबाजी की क्या औकात यहाँ..
राजनीती भी कहाँ चलती है,,!
लिखवाके तकदीर हम,,जग मे आते है,पर
कोरा कागज ओर कलम साथ लिये आते है |
लिखनी है, हम को खुदकी करनी,,
न साथ देता यहाँ कोई,, "दोस्तों,"
ये अकेले की सुनवाई होती है,,
महेफ़िक मे भले ही खुद को हजारों मे पाओ,
यहाँ सिर्फ सवारी अकेले की होती है, |
न राजा, रंक न कोई भिखारी यहाँ,,
न कोई बादशाही चलती है,,
कर्म की गति न्यारी है,,
सारे जग पे भारी है,, |

Hindi Poem by Alpa : 111244488

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